असल गुरु की पहचान।

सभी गुरु बाबा एक जैसे ही है सभी खराब है कोई भी ठीक नही असल नही , क्या आज आप भी कुछ ऐसा ही तो नहीं सोच रहे ? अगर हाँ . तो एक बार मेरी भी सुन ले ।
सच्चे गुरु की क्या पहचान होती है कभी हमने इसके ऊपर विचार किया है? दुनियाँ में ढोंगी गुरु अपने मनमाने ढंग से लोगों को मूर्ख बना रहे हैं। जिस दिन हमारे भीतर प्रभु को मिलने की सच्ची जिज्ञासा पैदा हो जाएगी उसी समय हमें पूर्ण गुरु की प्राप्ति हो जाएगी।
आज बहुत सारे ढोँगी,पाखंडी व्यक्ति गुरु का रुप बना कर जनता को गुमराह कर रहेँ हैँ।
इन्हीँ लोगोँ के बारे मेँ कहा गया कि-
"बिना दर्द भी आह भरने वाले बहुत मिलेँगे,
धर्म के नाम पर गुनाह करने वाले बहुत
मिलेँगे,
किसे फुर्सत है भटके हुए को राह दिखाने
की,
विश्वास देकर गुमराह करने वाले बहुत
मिलेँगे।"
लेकिन ईमानदारी से देखने पर पता चलता है कि इस समस्या के लिए जिम्मेदार हैँ-हम स्वयं,हमारी अज्ञानता।
जैसे मान लेँ कि कोई व्यक्ति सोने की जगह Polished brass ले आए तो इसके लिए दोषी वह भी है ।ऐसा होने पर वह सोना खरीदना नहीँ छोड़ देता है बल्कि खरे सोने और सुनार की परख सीखता है ।ठीक ऐसे ही पाखण्डी को देखकर गुरु -सत्ता से वैर नहीँ करनी चाहिए बल्कि पूर्ण सद्गुरु की कसौटी जानकर उसपर उसे परखना चाहिए।
हमेँ जान लेना चाहिए कि नकल उसी की होती है जिसका असल होता है।जैसे 500 का नकली नोट भी होता है क्योँकि उसका असली है । 300 का असलनहीँ है इसलिए उसका नकल भी नहीँ है।यानि आज यदि इतने नकली गुरु हैँ तो कहीँ असली भी हैँ जरुरत है उसे पूर्णता की कसौटी पर परखने की।
जरा सोचेँ ,हम किस आधार पर गुरु धारण
किए हैँ या करेँगे-
1.इनके पीछे कितनी भीड़ है!जरुर कोई खास
बात होगी।
2.चेहरे पर कितना तेज है!जरुर
वर्षोँ की तपस्या का फल होगा।
3.धार्मिक ग्रंथोँ का इन्हेँ कितना ज्ञान
है।जरुर महान शास्त्रज्ञ होँगे।
4.पीढ़ियोँ से हमारा खानदान इन्हेँ गुरु
मानता आया है।हम भी इन्हेँ ही मानेँगे।
5.कितना धाराप्रवाह सत्संग-भजन सुनाते
हैँ!जरुर ये ही ईश्वर के संदेशवाहक होँगे।
6.जिसने भी मुराद
की झोली फैलाई,इन्होँने
खाली नहीँ लौटाई।बड़े वरदानी बाबा हैँ!
7.योगासनोँ,प्रा णायामोँ पर कितनी पर
कितनी पकड़ है!जरुर ये महायोगी हैँ।
8.ये काफी अच्छी फीस लेकर दीक्षा देते हैँ।
जरुर बड़ा हाई-फाई ज्ञान देते होँगे।
9.ऐसे ऐसे पढ़े लिखे लोग इनके
अनुयायी हैँ,जिन्हेँ आसानी से
भरमाया नहीँ जा सकता।
10.इनका बड़ा ही विनम्र,मधुर और हँसमुख
स्वभाव है।इनसे बातेँ करके दिल
को बड़ी ठंडक मिलती है।
11.इनके साथ लगने पर समाज मेँ
हमारी मान-प्रतिष्ठा खूब बढ़ जाएगी।
12.दीक्षा के समय ही दिव्य-
दृष्टि (तीसरा नेत्र) खोलकर अंतर्जगत मेँ
ईश्वर का प्रत्य्क्ष दर्शन कराते हैँ।
यदि हम 12वेँ के अलावा किसी और विकल्प
को चुनते हैँ तो हम बहुत बड़े धोखे मेँ हैँ।
शास्त्रोक्त वर्णित पूर्ण गुरू
की कसौटी केवल और केवल 12वां ही है।
विवेकानंद जी जैसी जिज्ञासा होगी तो स्वामी राम कृष्ण जैसा गुरु जीवन में आ जाएगा। गुरु दुनियाँ की सुख सुविधाएँ नहीं बल्कि ईश्वर को मिलाने की क्षमता रखता है। सही मायिने में गुरु उसे ही कहते हैं जो ईश्वर का साक्षात्कार करवा दे। इस लिए आडंबर नहीं सच्ची जिज्ञासा पैदा करें। एक बार सच्चे मन से प्रभु को मिलने की अरदास करें। समस्या तो यह है कि हमें बहुत कुछ चाहिए मगर ईश्वर नहीं चाहिए। जितनी अहमियत हम जीवन में प्रभु को देते हैं उतनी ही प्रभु हमें देंगे। जिन्होंने सब कुछ उसको सौंप दिया है प्रभु ऐसे भक्तों के साथ खड़े हैं। इसलिए सच्चे गुरु की खोज करें। सभी ग्रंथों में सच्चे गुरु की पहचान बतायी गयी है।।








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Comments

  1. सुंदर! सत्य! ना सिर्फ आत्मा साक्षात्कार अपितु अध्यात्मिक पथ पर उत्तरोत्तर प्रगति में एक अध्यापक की तरह राह दिखाए!

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    1. शुक्रिया ।। गुरुवर का आशीर्वाद बने रहे ।।

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